बांग्लादेश की अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सुनाई फांसी की सजा

vardaannews.com

अगस्त 2024 में शेख हसीना को सत्ता से बेदखल करने के बाद जब अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने उनके कार्यकाल के दौरान अत्याचारों की समीक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) का पुनर्गठन किया था, तभी साफ हो गया था कि इसका परिणाम क्या होगा? सोमवार को वही हुआ जब न्यायाधिकरण ने ढाका में पूर्व प्रधानमंत्री हसीना और उनके पूर्व गृहमंत्री असदुज्जमां खान कमाल को मानवता के विरुद्ध अपराध का दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुनाई। सरकारी गवाह बन चुके पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्लाह अल मामून को 5 वर्ष कारावास की सजा सुनाई गई।

भारत में निर्वासित जीवन यापन कर रही हसीना ने फैसले को फर्जी और राजनीति से प्रेरित बताया है। फैसले के बाद बांग्लादेश में हिंसा की कुछ घटनाएं हुई। ढाका में हसीना के पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजबिर्रहमान के घर को गिराने की कोशिश की गई। सुरक्षा एजेंसियों ने प्रदर्शनकारियों को तीतर-भीतर करने के लिए लाठियां चलाई और आंसू गैस के गोले छोड़े।

फैसला आने के कुछ देर बाद बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को उसे सौंप दे। भारत ने पूरे प्रकरण पर बेहद सधी हुई प्रक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि वह सभी पक्षों से रचनात्मक तौर पर बातचीत करता रहेगा। बहरहाल इस पूरे प्रकरण से भारत और बांग्लादेश के संबंधों में और गिरावट आएगी। आईसीटी बांग्लादेश ने 78 वर्षीय शेख हसीना को मानवता के विरुद्ध अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा जुलाई-अगस्त 2024 के छात्र नेतृत्व वाले विद्रोह के दौरान हुई हिंसा के आरोपों पर सुनाई है। शेख हसीना सरकार पर आरोप था कि लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन कर रहे निहत्थे छात्रों पर सुरक्षा बलों ने ड्रोन और हेलीकॉप्टरों से गोलाबारी कराई थी। ढाका में जस्टिस गुलाम मुर्तजा मजूमदार की अध्यक्षता वाली पीठ ने 453 पृष्ठों के फैसले में हसीनों को उकसाने, हत्या का आदेश देने व अपराधों को रोकने में विफलता के आरोप में दोषी करार दिया है।

शेख हसीना की पार्टी बांग्लादेश अवामी लीग ने पूर्व प्रधानमंत्री की तरफ से फैसले पर विस्तृत बयान जारी किया है। इसमें हसीना ने आरोपों से इनकार करते हुए न्यायाधिकरण के फैसले को पक्षपातपूर्ण व राजनीति से प्रेरित बताया है। आईसीटी को “कंगारू कोर्ट” बता चुकी हसीना ने कहा कि कोर्ट में मुझे अपने पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया और ना ही मेरी अनुपस्थिति में मेरी पसंद के किसी प्रतिनिधि वकील को पेश होने दिया गया। पिछली सरकार से सहानुभूति रखने वाले जजों और वकीलों को भी हटा दिया गया। इसका एकमात्र उद्देश्य लोकतांत्रिक तरीके से चयनित एक सरकार से बदला लेना और बांग्लादेश की आजादी व स्वतंत्रता को रोकना है।

बयान में कहा कि मोहम्मद यूनुस ने अतिवादी ताकतों की मदद से गलत तरीके से सत्ता हासिल की है। हसीना ने अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव को पारदर्शी एवं निष्पक्ष तरीके से करने की मांग भी की है। इस न्यायाधिकरण का पुनर्गठन एक अनिर्वाचित सरकार ने किया है, इसीलिए उन्होंने अंतरिम सरकार को बार-बार चुनौती दी है कि वह इन आरोपों को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें। हसीना की तरह भारत में रह रहे कमाल ने भी दोहराया कि आईसीटी अमान्य और संवैधानिक है।

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