मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का अभियान चलाएगी विश्व हिंदू परिषद

vardaannews.com

(मुंबई) विश्व हिंदू परिषद ने तय किया है कि सभी हिंदू मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का अभियान चलाएगी। इसके लिए विश्व हिंदू परिषद 7 सितंबर से सभी राज्यों के मुख्यमंत्री से मिलेगी और उन पर हिंदू मंदिरों को सरकार नियंत्रण से मुक्त करने का दबाव बनाएगी।

महाराष्ट्र के जलगांव में 2 दिन चल रही विश्व हिंदू परिषद की केंद्रीय प्रबंध समिति की बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत में परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि सरकार चर्च नहीं चलाती, मस्जिद नहीं चलाती, गुरुद्वारा नहीं चलाती, लेकिन मंदिर चलाती है।

मंदिर की आय का 12% सरकारी खजाने में जमा : कई राज्यों का कानून कहता है कि मंदिर की आय का 12% प्रशासनिक खर्च के रूप में सरकारी खजाने में जमा किया जाएगा। 2% ऑडिट फीस लेते हैं। यदि मंदिर में कोई प्रशासक रखा गया तो उसका वेतन भत्ता मंदिर से लिया जाएगा। जबकि हमारे जमीनों की रक्षा सरकार नहीं कर पा रही है। यह भी सुनिश्चित नहीं कर पा रही है कि मंदिर में अच्छे वातावरण में पूजा हो। 

सरकारी नियंत्रण से सभी मंदिर वापस : इसीलिए 7 सितंबर से हम प्रत्येक मुख्यमंत्री को मिलेंगे और उनसे कहेंगे कि उन्हें मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने पड़ेंगे। हम विधानसभा के सत्रों में प्रत्येक विधायक से मिलेंगे और उनसे कहेंगे कि वह मंदिर वापस करने के लिए अपनी पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाएं। इस प्रकार सरकारी नियंत्रण से सभी मंदिर वापस लेकर उन्हें एक ट्रस्ट चलाया जाएगा। जिसमें भक्तों के सभी वर्ग शामिल होंगे।

हिंदी-मराठी विवाद दुर्भाग्यपूर्ण : महाराष्ट्र में इन दिनों चल रहे हिंदी-मराठी विवाद पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए आलोक कुमार ने कहा कि यह विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। हम तो संविधान में विश्वास करने वाले लोग हैं। इसीलिए संविधान के शेड्यूल में जितने भी भाषाएं शामिल है उन सभी को राष्ट्रभाषा मानते हैं। इनमें हिंदी के साथ मराठी, बंगाली, तमिल सभी भाषाएं शामिल हैं। संविधान बनाने वालों ने यह भी स्वीकार किया है कि राज्य का कामकाज राज्य की भाषा में होने से लोगों को सुविधा होगी। लेकिन देश में संपर्क की भाषा हिंदी होगी। अब हिंदी को कौन सी कक्षा से पढ़ाया जाना चाहिए, इसके बारे में सरकार ने एक समिति बनाई है। सभी लोग उस समिति को अपनी राय देंगे। उसके आधार पर जो फैसला होगा वह स्वीकार्य होगा। मैं हिंदी और मराठी में कोई संघर्ष या विरोध नहीं देखता हूं। उन्होंने कहा कि आजकल भाषा, प्रांत, संस्कृति से संबंधित छोटे-छोटे मुद्दों को बड़ा करके विवाद खड़ा करने का षड्यंत्र चल रहा है।

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