बच्चों को घर पर ही बनाएं मजबूत व सशक्त

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इस बदलती और असुरक्षित होती दुनिया में कुछ ऐसे नियम है जो बच्चों को जिंदगी के हुनर की तरह सिखाए-पढ़ाए जाने चाहिए। नियम जो बच्चों की सुरक्षा, आत्मविश्वास बढ़ाए और व्यक्तित्व को भीतर से मजबूत करें। बच्चे घर से जो सीखते हैं वही दुनिया में उन्हें कमजोर या मजबूत बनाता है। तो क्यों न उन्हें ऐसे नियम सीखने जो उन्हें अंदर से मजबूत करें।

डर के बगैर सच बोलना : अक्सर बच्चे झूठ इस डर से बोलते हैं की सच्चाई बताने पर डांट पड़ेगी। यह पहला नियम बने की सच बोलने पर भरोसा मिलेगा सजा नहीं। बच्चों को ये महसूस कराएं, की उसने कोई गलती नहीं की है सच बोलकर बल्कि उसने बहादुरी दिखाई है। सच बोलने पर तुरंत उसे समझने से बच्चा भय नहीं ईमानदारी चुनता है। यह नियम उसे जीवन में भी लटकर सच के साथ खड़े रहने का साहस देगा

सवाल करने की आजादी : घर का ऐसा नियम बनाएं कि कोई भी सवाल पूछा जा सकता है। चाहे वह रिश्ते, समाज, लोगों किसी से भी जुड़ा हो। बच्चा जब सवालों को बिना डरे पूछता है, तब उसका आत्मविश्वास बढ़ता है और झिझक की जंजीरें टूटती है। सवाल करना ही सीखने की पहली सीढ़ी है। किस सवाल का जवाब कैसे देना है, यह बड़ों को मालूम होना चाहिए।

हर रिश्ते में ना का मतलब ना होना चाहिए : यह नियम सिर्फ बाहर की दुनिया के लिए नहीं घर के भीतर भी उतना ही लागू हो। अगर बच्चा किसी भी खेल, बात या स्पर्श से असहज महसूस करें, उसकी ना तुरंत माने। जब आप बच्चों के इनकार का सम्मान करेंगे तभी वह दूसरों से भी यही सम्मान पाने की उम्मीद करेगा और साहसपूर्वक अस्वीकृति जताना सीखेगा। यह नियम बच्चों को यौन शोषण, भावनात्मक शोषण या दोस्ती के नाम पर दबाव झेलने से बचा सकता है।

किसी को भी छूने की इजाजत न देना : गुड टच- बेड टच समझाने से आगे बढ़े। नियम साफ हो बिना अनुमति के कोई भी किसी को भी छूएगा नहीं चाहे वह परिवार का सदस्य ही क्यों ना हो। यह नियम बच्चों में अपने शरीर पर पूर्ण अधिकार का एहसास कराता है। साथ ही बड़े भी तर्क रहते हैं कि बच्चे की सीमाओं का उल्लंघन ना हो। इसमें बच्चों में आत्मसम्मान और सुरक्षित सीमाओं की समझ विकसित होती है।

मैं नहीं जनता/ जानती कहना भी ठीक है : बच्चों को हर सवाल का जवाब तुरंत देना जरूरी नहीं। कभी-कभी उन्हें बताना कि मुझे पता नहीं लेकिन मैं तो पता करूंगा/ करूंगी, यह भी उन्हें सिखाता है कि इंसान हर बात नहीं जान सकता और सीखना जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है। इससे उनमें झूठ बोलने की आदत नहीं बनती बल्कि जिज्ञासा और शोध का हुनर पनपता है।

घर के सभी बड़ों को पहले खुद इन नियमों का पालन करना होगा। हर हफ्ते परिवार के साथ बैठे और बच्चों से उनकी राय जाने। यह नियम कोई नैतिक शिक्षा का ज्ञान नहीं बल्कि जीवन जीने की न्यूनतम आवश्यकता है। जैसे हम बच्चों को हाथ धोना, खाना चबाना और स्कूल जाना सिखाते हैं वैसे ही सच बोलना, ना कहना, सवाल करना और शरीर की सीमाओं का सम्मान भी सीखना होगा। शुरुआत घर होगी तभी बच्चे दुनिया के हर रंग का सामना आत्मविश्वास के साथ कर पाएंगे।

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