राजस्थान के चूरू में भारतीय वायु सेना का जगुआर लड़ाकू विमान बुधवार दोपहर 12:40 बजे दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हादसे में पायलट व सह पायलट बलिदान हो गए।
भानूदा गांव के निकट खेत में जहां विमान गिरा, वहां एक बड़ा गड्ढा बन गया और भीषण आग लग गई, जिससे आसपास के पेड़ भी जल गए। वायु सेना ने घटना के कारणों की जांच के लिए कोर्ट आफ इंक्वारी का आदेश दिया है। 2 सीटर यह विमान नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर था।
चूरू के पुलिस अधीक्षक जय यादव ने बताया कि मलबे के पास पायलट और सह पायलट के शव बुरी तरह क्षत-विषक्त मिले हैं। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि तकनीकी कारणों से पायलट इजेक्ट नहीं कर सके। इस हादसे में किसी नागरिक या संपत्ति को नुकसान नहीं हुआ है। विमान ने सूरतगढ़ एयरवेज से उड़ान भरी थी,जो कि विमान गिरने के स्थान से 160 किलोमीटर दूर है। बलिदान होने वाले पायलट में रोहतक स्क्वाड्रन लीडर लोकेंद्र सिंधु और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ऋषि राज सिंह है। ग्रामीणों के अनुसार उन्होंने पहले विमान की गड़गड़ाहट सुनी और फिर जोरदार धमाके की आवाज आई। मौके पर मौजूद प्रेम सिंह ने बताया कि जमीन पर गिरते ही विमान के छोटे-छोटे टुकड़े हो गए और आग लग गई। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया है।
स्क्वाड्रन लीडर लोकेंद्र सिंधु एक महीने पहले ही बने थे पिता : बलिदान हुए रोहतक के खेड़ी साध गांव निवासी स्क्वाड्रन लीडर लोकेंद्र सिंधु एक महीने पहले ही पिता बने थे। हादसे का समाचार मिलने से पूरे परिवार की खुशियां छीन गई हैं। लोकेंद्र की पत्नी सुरभि सिंधु डॉक्टर है।
जगुआर दुर्घटनाग्रस्त होने की है तीसरी घटना : इस वर्ष जगुआर लड़ाकू विमान के दुर्घटना होने की है तीसरी घटना है। इससे पहले 7 मार्च को हरियाणा के पंचकूला में जगुआर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। जिसमें पायलट सुरक्षित बच गए थे। 2 अप्रैल को गुजरात के जामनगर में दुर्घटना में जगुआर में लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव बलिदान हो गए थे।
1979 में शामिल हुआ जगुआर विमान 2008 तक एचएएल ने किया निर्माण : भारतीय वायु सेवा में वर्ष 1979 में जगुआर लड़ाकू विमान शामिल किए गए थे। एंगलो फ्रेंच तकनीक से बने 40 विमान से सीधे ही खरीदे गए थे। तब इन्हें शमशेर नाम दिया गया था। इसके बाद एचएएल ने तकनीक हस्तांतरण के जरिए 70 के करीब जगुआर लड़ाकू विमान का निर्माण देश में ही वर्ष 2008 तक किया गया। कुल 116 जगुआर विमान सेना में शामिल किए गए। इसकी छह स्क्वाड्रन है। जैगुआर के ट्विन सीटर विमान का उपयोग पायलटो को ट्रेनिंग के लिए भी होता है। भारतीय वायु सेना ने इसका उपयोग 1984 में सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत, 1987 व 1990 में श्रीलंका में शांति बलों के लिए निगरानी के लिए और 1999 में कारगिल युद्ध में किया था।
कई देशों ने इसका उपयोग करना बंद किया : ब्रिटेन,इक्वाडोर,फ्रांस,ओमान और नाइजीरिया जैसे देशों की वायु सेना जगुआर लड़ाकू विमान का उपयोग करना बंद कर चुकी है। ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स में अप्रैल 2007 तक और फ्रांसीसी वायु सेना में जुलाई 2005 तक जगुआर विमान उड़ान भरते रहे। भारतीय वायु सेना के जगुआर लड़ाकू विमान से संबंधित अब तक 50 के करीब हद से हो चुके हैं।
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