आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। भारत में यह पर्व आध्यात्मिक या अकादमिक गुरुओं के प्रति सम्मान और कृतज्ञात को प्रकट करने के लिए मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा के नाम : गुरु पूर्णिमा को कई नाम से जाना जाता है। आषाढ़ महीने में होने के कारण इसे आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता है। महर्षि वेदव्यास जी के जन्म दिवस होने के कारण इसे व्यास पूर्णिमा या फिर वेदव्यास जयंती भी कहा जाता है।
गुरु का महत्व : मनुष्य के जीवन निर्माण में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह हमें पढ़ने का कार्य करते हैं इसलिए उनके प्रति कृतज्ञात का भाव होना चाहिए। हिंदू संस्कृति में गुरु को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है क्योंकि गुरु के बिना मनुष्य का कल्याण संभव नहीं हो सकता। कबीर दास आदि कुछ संतो ने तो यहां तक कहा है कि गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है, क्योंकि गुरु ही मनुष्य को भगवान का ज्ञान करते है अथवा उनसे मिलते है। यही नहीं गुरु के बिना व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान अथवा मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। गुरु ही हमें अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। वह अपने ज्ञान रूपी सूर्य से शिष्य के जीवन में अध्यात्म और कर्म का प्रकाश बिखेरकर जीवन को सफल बनाने का कार्य करते हैं। वे हमें कर्म-अकर्म, ज्ञान-अज्ञान, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति, कर्तव्य और अधिकार आदि का महत्व और उपयोगिता का बोध करके उचित मार्ग पर ले जाते हैं।
सृष्टि के प्रथम गुरु : इस दिन महर्षि वेदव्यास जी की पूजा के बिना गुरु पूर्णिमा की पूजा पूरी नहीं मानी जाती। शास्त्रों में के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी भगवान श्री हरि विष्णु के अंशावतार थे। उन्होंने ही मानव जाति को पहली बार चार वेदों का ज्ञान भी प्रदान किया था। इसलिए हिंदू संस्कृति में महर्षि वेदव्यास जी को ही सृष्टि का प्रथम गुरु माना जाता है। इसलिए उनकी पूजा के बिना गुरु पूर्णिमा का पाव संभव नहीं होता।
स्नान दान का महत्व : गुरु पूर्णिमा के दिन पवित्र जल से स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन दान करने का भी बड़ा महत्व है। इस दिन अन्य, वस्त्र, धन, या अन्य जरूरी चीजों का दान करना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन गौ का दान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य मिलता है।
साधना और ध्यान : धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को साधना और ध्यान करना चाहिए। क्योंकि मनुष्य का मन विचलित और चंचल होता है इसलिए ध्यान और साधना करने से मन शांत और एकाग्र होता है जिस व्यक्ति को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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