आपबीती : सन 1971 की लड़ाई के बाद में नौसेना के लीडिंग सीमेन पद से सेवा निर्मित होकर घर आया था। गठिया बाय होने के करण नौसेना से अपंगता पेंशन पा ली। मैं हरियाणा के बल्मबा गांव में रहता था। सन 1974 में चौधरी देवीलाल, चौधरी चांदराम गांव में आए और समर्थन मांगा। इमरजेंसी लगने के समय मेरी उम्र 34 साल थी। एक शिक्षक होने के नाते मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इमरजेंसी के विरोध में पत्र लिख दिया। पत्र लिखने के बाद जब मैं डाकखाने गया तो वहां पोस्ट मास्टर की जिम्मेदारी एक स्कूल टीचर को सौंप गई थी। जब पत्र पोस्ट मास्टर को दिया तो उन्होंने चोरी-छिपे से पढ़ लिया और मेरी सेना पेंशन की कॉपी मांगी। साथ ही डाक रजिस्ट्री भेजने के पैसे भी लिए और बोले इसकी रसीद में आपके घर पर भेज दूंगा। रशीद और पेंशन कॉपी घर नहीं पहुंची तो मैं डाकखाने गया। पोस्टमास्टर मुझे झूठ बोलता रहा। जुलाई में एक दिन पुलिस ने मेरे घर पर छापा मारा लेकिन मैं बाहर गया हुआ था। जब आया तो पड़ोसियों ने बताया कि पुलिस आई थी। असल में पुलिस आने का मतलब था कि वह पड़कर नसबंदी करवा देंगे।
अचानक एक दिन हमारे घर पर पुलिस 60 साल के चाचा को पकड़ कर ले गई। पुलिस ने जबरदस्ती उसकी नसबंदी करवा दी। सितंबर में पुलिस फिर से मेरे घर पर आई, मैं उसे समय खेत में था। पुलिस वाले खेत में ही मेरे पास पहुंचे लेकिन तब तक गिरफ्तारियां बंद हो चुकी थी। पुलिस ने मुझे गिरफ्तार नहीं किया लेकिन विरोध न करने की सलाह दी।
आपातकाल की बुरी यादें आज तक भी दिमाग पर छपी हुई है। रोहतक के दरिया नगर वासी पूर्व नौसैनिक मास्टर वेदपाल राठी मेरा नाम व पता है।
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