मंदिरों में पैसे लेकर वीआईपी (VIP)दर्शन आजकल आम हो गया है। वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में पैसे लेकर दर्शन कराने वाले बाउंसरों की गिरफ्तारी के बाद श्री काशी विश्वनाथ धाम में सुगम दर्शन के नाम पर एक साथ 21 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। वहीं कुछ ही दिनों पहले ओंकारेश्वर स्थित ममलेश्वर मंदिर में भक्तों से वीआईपी दर्शन के नाम पर अवैध वसूली करने पर प्रशासन ने एक होमगार्ड और दो पंडितों पर कार्रवाई की है।
आज के समय में यह गहन चिंता का विषय बन गया है। देश विदेश से भगत लोग अपनी श्रद्धा से अपने आराध्य का दर्शन करने आते हैं लेकिन देश के प्रमुख मंदिरों में सीधे दर्शन करने के नाम पर पैसों की लूट मची हुई है। लेकिन सवाल यह है कि हिंदुओं के धार्मिक स्थलों और आयोजनों में क्यों भक्तों के बीच भेदभाव होता है? मंदिरों में गरीब एवं आमिर के बीच भेदभाव की स्थितियां खुला भ्रष्टाचार ही तो है। पैसे लेकर वीआईपी दर्शन की अवधारणा भक्ति एवं आस्था के खिलाफ है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में तो बहुत अच्छी सुरक्षा व्यवस्था भी है। मंदिर का चप्पा चप्पा सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में है। यह मंदिर सुरक्षा के लिहाज से अति संवेदनशील स्थल होने के बावजूद ऐसा कार्य खेदजनक है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में तो सुगम दर्शन का शुल्क भी जमा कराया जाता है पर लोगों की जमात ने शीघ्र दर्शन के नाम पर कमाई का नया रास्ता तलाश कर लिया है। मंदिर प्रबंधन को चाहिए कि वह सुगम दर्शन व्यवस्था के नाम पर हो रही धांधली को गंभीरता से ले। यह सब काफी समय से चल रहा होगा। इस प्रकार की ठगी करने की संभावना कैसे बन जाती है इसकी जांच होनी चाहिए।
यह समस्या केवल ठाकुर बांके बिहारी मंदिर या श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की नहीं बल्कि देश के प्रमुख मंदिरों में बढ़ती जन आस्था की भीड़ में लंबी-लंबी लाइनों के बीच पैसे लेकर सुगम दर्शन करने की विसंगति पूर्ण स्थितियों की है जिसने नए केवल देश के आम आदमी के मन को आहत किया है बल्कि भारत के सामान्य के सिद्धांत की भी धज्जियां उड़ा के रख दी हैं।
अक्सर नेताओं एवं धनी व्यक्तियों को विशेष दर्शन करने के लिए मंदिर परिसरों को आम लोगों के लिए बंद कर दिया जाता है जिससे श्रद्धालुओं को भारी परेशानी होती है। वीआईपी लोगों को तरह-तरह की सुविधा दी जाती है। उनके वाहन मंदिर के दरवाजे तक जाते हैं। उनके साथ पुलिस व्यवस्था भी रहती है जबकि आम श्रद्धालुओं को कई किलोमीटर पैदल चलना होता है और भगवान के दर्शन भी दूर से कराए जाते हैं और उनके साथ धक्का मुक्की भी की जाती है।
आज हिंदू मंदिरों की भेदभाव पूर्ण दर्शन व्यवस्था को समाप्त करके ही आम आदमी को उचित सम्मान दिया जा सकता है व उसकी निराशा और पीड़ा को समझा जा सकता है। सरकार को मंदिरों एवं धार्मिक स्थलों से वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
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