शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने कोटा शहर में छात्रों की आत्महत्या के मामले में राजस्थान सरकार को फटकार लगाई और स्थिति को बेहद गंभीर बताया। कोटा राजस्थान में बसी वह शिक्षा नगरी है जहां बच्चे अपने सपनों को उड़ान देने के लिए जाते हैं न जाने कितने परिवार अपने बच्चों को उनके उज्जवल भविष्य और उनको अपनी मंजिल प्राप्त करने के लिए कोटा भेजते हैं लेकिन कोटा में बढ़ते छात्रों के आत्महत्या के मामले ने उनके माता-पिता को सोचने पर मजबूर कर दिया है।
जनवरी 2025 से लेकर अब तक इस वर्ष में 27 छात्र अपनी जान दे चुके हैं शुक्रवार 23 मई को न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि छात्रों की आत्महत्या का यह मामला बेहद गंभीर है और उन्होंने राजस्थान सरकार से प्रश्न किए की आखिर इतने छात्र खुदकुशी करने पर क्यों विवश हो रहे हैं? और राज्य सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए? न्याय पीठ ने कहा कि क्या यही आज की युवा पीढ़ी का भविष्य है? क्या इसके लिए राजस्थान सरकार का कोई कर्तव्य नहीं बनता?
4 मई को नीट परीक्षा से कुछ घंटे पहले कोटा के होस्टल में 17 वर्षीय छात्रा का शव मिला था। 4 मई कोई आई आईटी खड़कपुर के एक छात्र ने होस्टल के कमरे में फांसी लगा ली थी। 6 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इसका स्वत: संज्ञान लिया था। यह निर्णय कोर्ट को इसलिए लेना पड़ा क्योंकि सरकार ने पिछली खुदकुशी के बाद जो निर्देश जारी किए थे उनका कोई पालन नहीं हुआ। कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे कि वह युवा पीढ़ी की मानसिक सेहत सुरक्षित करें और उन्हें खुदकुशी से बचाने के लिए नेशनल टास्क फोर्स बनाएं । जिसमें दो दिन में 20 लख रुपए जमा करवाऐ जाएं। यह निर्देश कोर्ट ने मार्च 2025 दिया था। चीफ जस्टिस का कहना है कि कोर्ट के बार-बार निर्देश देने के बावजूद भी राज्य सरकार छात्रों की बढ़ती खुदकुशी के मामले को रोकने के लिए कुछ नहीं कर पाई।
आत्महत्या बचाव दल के सदस्यों और मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सूर्यकांत त्रिपाठी का कहना है कि कोटा बढ़ती छात्रों की आत्महत्या के कई कारण है जिसमें से प्रमुख कारण एक ही एग्जाम है सभी बच्चे एक ही एग्जाम देते हैं जिसमें से पास तो कम होते हैं लेकिन अधिक फेल होते हैं जिससे बच्चों में हीन भावना पनपत्ति है और इसी कारण वह आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं। माता-पिता का बच्चों से अधिक उम्मीदें लगाना भी बच्चों को मानसिक रूप से कमजोर करता जा रहा है। हर साल 14 से 16 लाख विद्यार्थी परीक्षा देते हैं लेकिन चयन तो केवल कुछ ही हजार का होता है इसलिए जिन बच्चों का सिलेक्शन नहीं हो पाता वह खुदकुशी का रास्ता अपना लेते हैं।
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